बच्चों के मुख से
(आभव और आरुष को बहुत छोटी उम्र से ,
लगभग एक वर्ष की उम्र से हीं स्कूल जाना
पड़ा .पापा इस छोटी उम्र में उन्हें स्कूल जाते
दखते तो उन्हें बहुत पीड़ा होती .इस कविता
के माध्यम से उन्होंने अपनी पीड़ा को व्यक्त
करने की कोशिश की है. )
(दिनांक 06 -०१-2012 ,बंगलोर )
हाथी, घोड़े ,बन्दर ,भालू ,
इतने सारे ढेर खिलौने ,
मुझे नहीं अच्छे लगते हैं ,
मुझे नहीं इनमें कुछ लेने .
यह सब मुझको नहीं चाहिए ,
माँ तुम जल्दी आओ तो ,
कितनी देर करोगी ,
कम से कम यह भी बतलाओ तो .
मैं रोता रह गया ,मुझे
लग रही भूख थी जोरों की ,
तुम्हे बहुत मैं ढूंढ़ रहा था ,
माँ तुम बोलो कहाँ गयी थी ?,
नींद मुझे जब लगाती है ,
तो लगता है माँ आएगी.
दौड़ गोद में ले लेगी ,
थपकी दे मुझे सुलायेगी .
कल भी राह देखता मैं रह गया ,
नहीं बिल्कुल सोया ,
नींद आ रही थी जोरों की ,
लेकिन सारे दिन रोया .
कितना अच्छा होता माँ ,
जो हम तुम सदा संग रहते ,
खेल खेलते तरह -तरह के ,
सारे दिन मिलकर हँसते.
टीचर मेरी अच्छी है ,
पर वह तो केवल टीचर है ,
भैया -दीदी ,संगी -साथी ,
माँ तो सबसे ऊपर है .
सुनो ध्यान से मेरी बातें ,
मुझे यही बस कहना है ,
कल से चाहे कुछ भी कर लो ,
अलग नहीं अब रहना है .