साथ तुम्हारा
(अपने retirement के सिर्फ आठ दिनों
के बाद पापा द्वारा लिखी गयी कविता )
(अपने retirement के सिर्फ आठ दिनों
के बाद पापा द्वारा लिखी गयी कविता )
(दिनांक 09 -08 -2008 ,रांची )
हाँथों में ले हाँथ तुम्हारा ,
बढ़ा किये अन्जान डगर ,
साथ -साथ चलते ,जाने
कैसे ये कटता गया सफ़र .
संग -संग मिलकर देखे थे ,
हमने कितने हीं सपने ,
कभी हँसे और कभी रो लिए ,
कौन पराये ,कौन अपने .
लोग मिले और छूट गए ,
यह पथ अब तो एकाकी है ,
बीत गयी दोपहर ,ढला दिन,
बस अब संध्या बाकी है .
दे देना मुस्कान मुझे,
जब मैं उदास हो जाऊंगा ,
मुझे सहारा दे देना ,
जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा .