Thursday, 5 January 2012

मेरे बच्चे 
(दिनांक 26 -01 -२०११,बंगलोर )


साँस धीरे -धीरे पिघलती  जायेगी ,
पिघलती जायेगी ,
और मैं अतीत बन जाऊंगा .
अतीत के पन्नों में खो जाऊँगा .
किस्से- कहानियाँ  बनकर रह जाऊँगा .
लेकिन मेरे बच्चे ,
मैं अपने आपको ,
तुमसे अलग नहीं रह पाऊंगा .
यह मेरे लिए नामुमकिन  होगा ,
बिलकुल नामुमकिन होगा ,
मैं अपने आपको ,
तुमसे अलग नहीं कर पाऊंगा .
मैं आऊंगा ,
सुबह की किरण बन कर ,
तुम्हे  जगाने को ,
मैं आऊंगा ,
हवा का शीतल झोंका बन कर ,
तुम्हे सुलाने को .
मैं आउंगा ,
दुधिया चाँदनी बन कर ,
तुम्हे नहलाने को .
मैं आऊंगा ,
बच्चों की किलकारियाँ  बन कर ,
तुम्हे हँसाने को
गुदगुदाने  को
या फिर ,
तुम जब -जब उदास होगे ,
मैं तुम्हारे कानों में गुनगुनाऊंगा ,
तुम सदा खुश रहना ,
मेरे बच्चे ,
तुम सदा खुश रहना .

        

1 comment:

  1. Every parents should tell this poem to their children.

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