ऐ वतन
(यह कविता वर्ष 1962 में chinese aggression
के समय लिखी गयी थी.)
कतरा-कतरा लहू का तुम्हारे लिए ,
मेरी हर साँस है, बस तुम्हारे लिए ,
मेरा मन ,मेरा तन है तुम्हारे लिए ,
ऐ वतन हम बने हैं तुम्हारे लिए .
जिसकी आँचल में सुख चैन तुमको मिला ,
गोद में जिसके बचपन तुम्हारा खिला ,
बारूदी गंध हर ओर है अब वहाँ,
कर्ज मिट्टी का तुमने चुकाया कहाँ ,
तुम उठो , इन हवाओं के रुख मोड़ दो ,
हाँथ नापाक जो उठ रहे , तोड़ दो ,
ज़िन्दगी की कहानी यहीं छोड़ दो ,
आगे बढ़ ,सर पे अपने कफ़न ओढ लो .
(यह कविता वर्ष 1962 में chinese aggression
के समय लिखी गयी थी.)
कतरा-कतरा लहू का तुम्हारे लिए ,
मेरी हर साँस है, बस तुम्हारे लिए ,
मेरा मन ,मेरा तन है तुम्हारे लिए ,
ऐ वतन हम बने हैं तुम्हारे लिए .
जिसकी आँचल में सुख चैन तुमको मिला ,
गोद में जिसके बचपन तुम्हारा खिला ,
बारूदी गंध हर ओर है अब वहाँ,
कर्ज मिट्टी का तुमने चुकाया कहाँ ,
तुम उठो , इन हवाओं के रुख मोड़ दो ,
हाँथ नापाक जो उठ रहे , तोड़ दो ,
ज़िन्दगी की कहानी यहीं छोड़ दो ,
आगे बढ़ ,सर पे अपने कफ़न ओढ लो .
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