Tuesday, 27 March 2012

ऐ वतन
 (यह कविता वर्ष 1962 में chinese aggression
  के समय लिखी गयी थी.)



कतरा-कतरा लहू का तुम्हारे लिए ,
मेरी हर साँस है, बस  तुम्हारे लिए ,
मेरा मन ,मेरा तन है तुम्हारे लिए ,
ऐ वतन हम बने हैं    तुम्हारे लिए .

जिसकी आँचल में सुख चैन तुमको मिला ,
गोद में जिसके     बचपन   तुम्हारा खिला ,
बारूदी   गंध  हर  ओर   है   अब         वहाँ,
कर्ज   मिट्टी   का   तुमने  चुकाया   कहाँ ,

तुम  उठो , इन  हवाओं  के  रुख  मोड़  दो ,
हाँथ   नापाक   जो   उठ   रहे ,  तोड़    दो ,
ज़िन्दगी   की   कहानी   यहीं   छोड़    दो ,
आगे   बढ़ ,सर पे अपने कफ़न  ओढ लो .

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