Sunday, 25 March 2012

पिता..
(पापा ने यह कविता father 's  day के दिन
लिखी थी .उनहोंने यह कविता स्वर्गीय
दादा जी को dedicate किया था )
  (दिनांक 15 -06 -2008 ,राँची )



झुर्रियों में लिपटा,
लेकिन सदा की तरह हँसता,
एक चेहरा कौंधता है
मेरे जहन में,
देखता हूँ पिता को-
अपने जहन में.
देखता हूँ एक तरुवर को,
जो धूप की तपिश,
बारिश के थपेड़ों,
और कांपती हुई ठंडी रातों को,
सहता गया,
निः:शब्द ,निर्विराम,
मेरे लिए,
सिर्फ मेरे लिए.
देखता हूँ पिता को-
अपने झुके हुए कन्धों पर,
मुझे लेकर चलते हुए,
उबड़-खाबड़ पगडंडियों पर,
हर पल,हर कदम,
चलते हुए ,सांस के बड़े- बड़े घूँट लेकर.
मेरे लिए,
सिर्फ मेरे लिए.
तुम थक नहीं सकते,
तुम बूढ़े हो नहीं सकते,
तुम मर नहीं सकते,
क्योंकि  तुम पिता हो,
मेरे पिता हो .

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