Sunday, 25 March 2012

होली..
 (इन पंक्तियों में एक तरफ जहाँ
 होली की मस्ती है वहीं व्यंग भी है )
 (दिनांक 14 -03 -2006 ,राँची )


महँगी के मार देख देख बुरा हाल बा ,
केहू बाप-बाप करे,केहू मालामाल बा,
कईसे मनायीं हम होली ए बबुआ ,
महंगा पिचकारी,रंग और गुलाल बा.


लाल,पियर,हरिअर,लागे अंग अंग में,
बबुआ बौड़ा गईले ,होली के हुडदंग में,
होली के टोली में,हंसी और ठिठोली में,
माई-बाप टुन्न बाड़े,भंग के तरंग में .

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