होली..
(इन पंक्तियों में एक तरफ जहाँ
होली की मस्ती है वहीं व्यंग भी है )
(दिनांक 14 -03 -2006 ,राँची )
महँगी के मार देख देख बुरा हाल बा ,
केहू बाप-बाप करे,केहू मालामाल बा,
कईसे मनायीं हम होली ए बबुआ ,
महंगा पिचकारी,रंग और गुलाल बा.
लाल,पियर,हरिअर,लागे अंग अंग में,
बबुआ बौड़ा गईले ,होली के हुडदंग में,
होली के टोली में,हंसी और ठिठोली में,
माई-बाप टुन्न बाड़े,भंग के तरंग में .
(इन पंक्तियों में एक तरफ जहाँ
होली की मस्ती है वहीं व्यंग भी है )
(दिनांक 14 -03 -2006 ,राँची )
महँगी के मार देख देख बुरा हाल बा ,
केहू बाप-बाप करे,केहू मालामाल बा,
कईसे मनायीं हम होली ए बबुआ ,
महंगा पिचकारी,रंग और गुलाल बा.
लाल,पियर,हरिअर,लागे अंग अंग में,
बबुआ बौड़ा गईले ,होली के हुडदंग में,
होली के टोली में,हंसी और ठिठोली में,
माई-बाप टुन्न बाड़े,भंग के तरंग में .
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