Sunday, 25 March 2012

एक समझदार पति..
(यह कविता पापा ने मम्मी को
चिढ़ाने के लिए लिखी थी )
   (वर्ष  1990 )




मेरी भी हैं,एक पत्नी,
(एक ही हैं गनीमत है इतनी),
सुन्दर,अति सुन्दर,
(सिर्फ पड़ोसियों के लिए)
कभी कभी मुझपर भी मेहरबान होती हैं,
(बस,घडी दो घडी के लिए)
सुबह से शाम तक,
मै उनकी बक-बक,
हंस हंस कर सुनता हूँ,
(और अकेले में बैठकर सर धुनता हूँ .)
तबभी  उस अकल मंद को
अकल्मन्द ही कहता हूँ,
हर समय उनकी तारीफें करता हूँ,
उनके भरे पूरे परिवार की,
गुण गाने की सजा भोगता हूँ,
उनके माँ-बाप, ढेर सारे भाई -बहनों को,
घर बुलाने से कभी नहीं रोकता हूँ,
इस बारे में मै गलती से भी कभी नहीं सोचता हूँ,
परन्तु यह सब मेरी मजबूरी है,
मेरे लिए जरूरी है,
क्योंकि ,हर समझदार पति,
अपनी नासमझ पत्नी से,
इसी तरह adjustment करता है,
यानी चौबीसों घंटे डरता है .

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