कंकड़ किसी ने फेंके ,पत्थर किसी ने मारे ,
हर दर्द सह गया मैं ,हर बार मुस्कुराया .
बातों की तीर से मैं ,जब-जब हुआ हूँ घायल ,
आँखों में एक समंदर जाने कहाँ से आया ,
कोई मरहम लगा दे ,यह तो नहीं जरूरी ,
फिर सामने किसी के ,क्यों ज़ख्म अपने खोलो ,
लोगों को क्या पड़ी है ,अपने को ख़ुद सम्हालो ,
रोना अगर पड़े तो, चुपचाप कहीं रो लो .
(दिनांक 12 -4 -2012 )
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