Tuesday, 3 January 2012

दीपावली 
(यह कविता दिनांक 25 -10 -2010 को
दीपावली की पूर्व संध्या में लिखी गयी थी )


यहाँ हर तरफ हीं अँधेरा बहुत है ,
एक दीया तो जलाओ ,एक दीया तो जलाओ .
अँधेरे को भी है, इंतजार रोशनी का,
एक दीया तो जलाओ ,एक दीया तो जलाओ .

रोशनी का भले एक कतरा सही ,
है सफ़र उसका छोटा ,यह भी सही ,
कहीं गुम  न हो जाए ,यह गम नहीं ,
उसकी पहचान है ,बस यही कम नहीं ,
उम्मीदों से अपनी दीवारें सजाओ  ,
एक दीया तो जलाओ ,एक दीया तो जलाओ .

मत हाँथ खींचो दीयों को जलाने से ,
शायद हजारों दीये जल उठेंगें .
कितने घरों में मनेगी दीवाली ,
कितने हीं आँखों में सपने सजेगें .
दीपावली है ,आज अपने भी अन्दर ,
एक दीया तो जलाओ ,एक दीया तो जलाओ
      

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