Thursday, 19 January 2012

माँ
(पापा को यह अफ़सोस रहता था कि उन्होंने अनेक
विषयों पर कवितायें लिखीं लेकिन वह माँ पर कुछ
नहीं लिख पाये.वे कहते थे ,"माँ" शब्द इतना व्यापक
है कि जब लिखने बैठता हूँ तो कुछ समझ में नहीं आता
है , क्या लिखूं !यह कविता एक दिन अचानक 2 .30  .
बजे रात में उठ कर उन्होंने लिखी )
      (दिनांक 18 -01 -2012 ,पटना )


माँ,
कई बार सोंचा ,
पर लिख नहीं कुछ पाता हूँ ,
सैकड़ों परछाइयों में ,
दृश्यों में ,
खो जाता हूँ ,

दूध की कटोरी ,
टूटा सा खटिया ,
बाँस का पंखा ,
नन्हा सा तकिया,

मीठी लोरियां ,
मंद -मंद थपकियाँ ,
काजल के टीके ,
प्यार भरी झिड़कियाँ,

प्यार और सुकून का घर ,
एक झीना आँचल ,
दुर्बल सी काया ,
बस प्यार और समर्पण ,

समझ नहीं आता है ,
कहाँ से शुरू करूँ ,
और कहाँ अन्त करूँ ,
माँ ,
तू अनन्त है ,
तू तो अनन्त है .     


1 comment:

  1. बहुत खूबसूरत कविता है,
    "माँ तू अनन्त है"--इससे ज्यादा उपयुत पंक्ति माँ के लिए हो ही नहीं सकती..!!

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