Saturday, 21 January 2012

साथ तुम्हारा
(अपने retirement के सिर्फ आठ दिनों
 के बाद पापा द्वारा लिखी गयी कविता )
(दिनांक 09 -08 -2008 ,रांची )



हाँथों में ले हाँथ तुम्हारा ,
बढ़ा किये अन्जान डगर , 
साथ -साथ चलते ,जाने 
कैसे ये कटता गया सफ़र .
संग -संग मिलकर देखे थे ,
हमने कितने हीं सपने ,
कभी हँसे और कभी रो लिए ,
कौन पराये ,कौन अपने .
लोग मिले और छूट गए ,
यह पथ अब तो एकाकी है ,
बीत गयी दोपहर ,ढला दिन,
बस अब संध्या बाकी है .
दे देना मुस्कान मुझे, 
जब मैं उदास हो जाऊंगा ,
मुझे सहारा दे देना ,
जब मैं बूढ़ा हो जाऊंगा .
   

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