रिश्ते
(बचपन में हम घर- परिवार ,अपने परिवेश
सबसे बहुत अधिक जुड़े रहते हैं . जब बड़े हो
जाते हैं तब भी यद्यपि वह प्यार- अपनापन ,
सबकुछ बना रहता है लेकिन पता नहीं क्यों
कहीं कुछ बदल सा जाता है. )
(दिनांक 08 -12 -2011 )
हम आज भी वही हैं ,हम अजनबी नहीं हैं ,
लेकिन पता नहीं क्यों ,इतने बदल गए हैं .
थी प्यार और मुहब्बत ,पहले हमारे दिल में ,
अब एक दूसरे से ,बिल्कुल सम्हल गए हैं .
शिकवे -शिकायतों के वो दौर भी ख़तम हैं ,
बेवाकियों की हद से आगे निकल गए हैं .
हम साथ -साथ होकर भी हैं अलग -अलग हीं,
इस भीड़ में हमारे रिश्ते फिसल गए हैं .
जब -जब गले मिले हम ,बस इस तरह लगा है ,
कुछ तुम बदल गए हो ,कुछ हम बदल गए हैं .
(बचपन में हम घर- परिवार ,अपने परिवेश
सबसे बहुत अधिक जुड़े रहते हैं . जब बड़े हो
जाते हैं तब भी यद्यपि वह प्यार- अपनापन ,
सबकुछ बना रहता है लेकिन पता नहीं क्यों
कहीं कुछ बदल सा जाता है. )
(दिनांक 08 -12 -2011 )
हम आज भी वही हैं ,हम अजनबी नहीं हैं ,
लेकिन पता नहीं क्यों ,इतने बदल गए हैं .
थी प्यार और मुहब्बत ,पहले हमारे दिल में ,
अब एक दूसरे से ,बिल्कुल सम्हल गए हैं .
शिकवे -शिकायतों के वो दौर भी ख़तम हैं ,
बेवाकियों की हद से आगे निकल गए हैं .
हम साथ -साथ होकर भी हैं अलग -अलग हीं,
इस भीड़ में हमारे रिश्ते फिसल गए हैं .
जब -जब गले मिले हम ,बस इस तरह लगा है ,
कुछ तुम बदल गए हो ,कुछ हम बदल गए हैं .
अच्छी ग़ज़ल है. बधाई!
ReplyDeleteVery well written mamaji......highly impressive....regards Shefali
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