Tuesday, 3 January 2012

मेरे पापा 
(एक बार पापा जब बंगलोर आये थे , उस समय
संजय जीजू का deputation कुछ महीनों केलिए
गोआ में था .आरुष तब करीब एक वर्ष का था .
जब जीजू घर आते थे तब आरुष बहुत खुश होता
 था .जीजू के जाने के बाद वह उन्हें बहुत miss
 करता था .इसी backgruond  में यह  कविता
दिनांक 11 -12 -2011 को लिखी गयी )


आओ मुन्नु ,आओ चुन्नु ,
देखो पापा आये हैं .
मम्मी तुम भी जल्दी आओ ,
देखो पापा आये हैं .
चहक उठा है ,महक उठा है ,
इस घर का कोना -कोना .
पापा के संग धूम -धड़ाका ,
अब कैसा रोना -धोना .
इतने सारे ढेर खिलोने ,
झोली भर खुशियाँ लाये .
पापा तुम कितने अच्छे हो ,
बहुत देर से क्यों आये ?
कितना अच्छा लगता है .
जब मुझे गोद में लेते हो .
सबकुछ तुरत बदल जाता है ,
क्या जादू कर देते हो .
डरता हूँ, मेरी ये खुशियाँ
क्या हरदम हीं रह पाएंगीं ?
मुझे छोड़ जब जाओगे ,
ये भी वापस हो जायेंगीं .
रोक नहीं पाऊंगा तुमको ,
दूर चले हीं जाओगे .
इतना मुझे बता देना ,
ओ पापा फिर कब आओगे  ?
              

No comments:

Post a Comment