Tuesday, 6 March 2012

           स्त्री 

  (दिनांक २९ .०२ २०१२ को पटना से
   बंगलोर जाते समय train में यह कविता
   लिखी गयी थी )


नन्ही बिटिया ,
माँ का आँचल ,
और कभी ,
पत्नी सा संबल,
कभी नीर झरता बादल,
कभी शून्य सा मरू -स्थल .
पर्ण -कुटी ,स्निग्ध ,निर्मल ,
रंग महल का कोलाहल.
कभी बँधी पैरों में सांकल ,
कभी इन्ही पैरों में पायल .
कहीं श्याम और कहीं धवल ,
कहीं सुधा और कहीं गरल .
हर क्षण ,हर पल ,
सम्हल सम्हल ,
इतने दलदल !
इतने हलचल !
देते तेरे रूप बदल .
  

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