स्त्री
(दिनांक २९ .०२ २०१२ को पटना से
बंगलोर जाते समय train में यह कविता
लिखी गयी थी )
नन्ही बिटिया ,
माँ का आँचल ,
और कभी ,
पत्नी सा संबल,
कभी नीर झरता बादल,
कभी शून्य सा मरू -स्थल .
पर्ण -कुटी ,स्निग्ध ,निर्मल ,
रंग महल का कोलाहल.
कभी बँधी पैरों में सांकल ,
कभी इन्ही पैरों में पायल .
कहीं श्याम और कहीं धवल ,
कहीं सुधा और कहीं गरल .
हर क्षण ,हर पल ,
सम्हल सम्हल ,
इतने दलदल !
इतने हलचल !
देते तेरे रूप बदल .
(दिनांक २९ .०२ २०१२ को पटना से
बंगलोर जाते समय train में यह कविता
लिखी गयी थी )
नन्ही बिटिया ,
माँ का आँचल ,
और कभी ,
पत्नी सा संबल,
कभी नीर झरता बादल,
कभी शून्य सा मरू -स्थल .
पर्ण -कुटी ,स्निग्ध ,निर्मल ,
रंग महल का कोलाहल.
कभी बँधी पैरों में सांकल ,
कभी इन्ही पैरों में पायल .
कहीं श्याम और कहीं धवल ,
कहीं सुधा और कहीं गरल .
हर क्षण ,हर पल ,
सम्हल सम्हल ,
इतने दलदल !
इतने हलचल !
देते तेरे रूप बदल .
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