Friday, 23 March 2012

एक इंजिनियर की औरत...
 (इस कविता में पापा ने अपने अनुभवों के
आधार पर एक irrigation  engineer के जीवन
 का बहुत हीं सजीव चित्रण किया है )
     (दिनांक 25 -03 -1997 ,पटना )



वह एक इंजिनियर की औरत,
बैठी है पति के इंतज़ार में.
यादों के चंद टुकड़ों को,
सहेजती हुयी ,पिरोती हुई,
बैठी है पति के इंतज़ार में.


उसका पति भटकता है-
घने जंगलों में,
निर्जीव पत्थरों में, पहाड़ों में,
दूर- दूर तक फैले बियावानों में .


भटकता है-
माघ की सर्दियों में,
जेठ की दोपहरियों में,
या वर्षा की मूसलाधारों में.


भटकता है-
बंजर धरती की प्यास बुझाने को,
लोगों के खेंतो में ,घरों में ,
जीवन लाने को,
उनकी पथराई आँखों में,
उम्मीद जगाने को,


वह एक इंजिनियर की औरत,
बैठी है पति के इंतज़ार में.
उसका खुद का घर बंजर हो गया,
वह खुद प्यासी रह गयी
उसकी खुद की आँखें पथरा गयीं.

लेकिन उसका पति,
युग - स्रष्टा है,
राष्ट्र- निर्माता है.
वह एक इंजिनियर की औरत
बैठी है पति के इंतज़ार में.






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