तीज
(उन दिनों पापा की posting कहलगाँव में थी .
वे वहीँ रहते थे .मम्मी पटना में रहती थीं .
तीज के मौके पर पटना आने केलिए पापा ने
छुट्टी ले ली थी ,लेकिन अंतिम समय पर
उनकी छुट्टी cancel हो गयी थी )
(दिनांक 17 -09 -1996 ,कहलगाँव )
अन्न का एक भी दाना नहीं लिया तुमने,
जल की एक बूँद भी नहीं कभी पिया तुमने,
मेरी सलामती, खुशहाली चाहने के लिए,
अपने ऊपर हज़ारों जुल्म ही किया तुमने.
दोपहर धूप में जब आसमाँ पिघलता हो,
जल रही होगी जमीं,लोग झुलसते होंगे,
कुछ उम्मीदों का सहारा लिए हुए केवल,
प्यास से होंठ तेरे सूखते रहे होंगे.
रात को लोग जब आराम कर रहे होंगे,
बंद कमरों की बत्तियां भी बुझ गयी होंगी,
छुपा के भूख की ऐंठन को मुस्कराहट में,
रात भर करवटें तुम तो बदल रही होगी.
भूख है,प्यास है, फिर भी तुम्हारे चेहरे पर,
आज एक चमक है,संतोष है,कुछ पाने का
अपनी हाँथों में लकीरों को गढ़ लिया तुमने,
हज़ार जन्म तक रिश्ता यही निभाने का
(उन दिनों पापा की posting कहलगाँव में थी .
वे वहीँ रहते थे .मम्मी पटना में रहती थीं .
तीज के मौके पर पटना आने केलिए पापा ने
छुट्टी ले ली थी ,लेकिन अंतिम समय पर
उनकी छुट्टी cancel हो गयी थी )
(दिनांक 17 -09 -1996 ,कहलगाँव )
अन्न का एक भी दाना नहीं लिया तुमने,
जल की एक बूँद भी नहीं कभी पिया तुमने,
मेरी सलामती, खुशहाली चाहने के लिए,
अपने ऊपर हज़ारों जुल्म ही किया तुमने.
दोपहर धूप में जब आसमाँ पिघलता हो,
जल रही होगी जमीं,लोग झुलसते होंगे,
कुछ उम्मीदों का सहारा लिए हुए केवल,
प्यास से होंठ तेरे सूखते रहे होंगे.
रात को लोग जब आराम कर रहे होंगे,
बंद कमरों की बत्तियां भी बुझ गयी होंगी,
छुपा के भूख की ऐंठन को मुस्कराहट में,
रात भर करवटें तुम तो बदल रही होगी.
भूख है,प्यास है, फिर भी तुम्हारे चेहरे पर,
आज एक चमक है,संतोष है,कुछ पाने का
अपनी हाँथों में लकीरों को गढ़ लिया तुमने,
हज़ार जन्म तक रिश्ता यही निभाने का
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