Sunday, 25 March 2012

जाड़े की धूप..
(दिनांक  29 -12 -2002 ,राँची)


शाम के धुंधलके में फीकी हुई धूप,
एक छोटी ज़िन्दगी को जीती हुई धूप,
किसी  बूढ़े- माँ बाप को सहारा देती हुई धूप,
अन्जान गलियों में आवारा होती हुई धूप,
किसी आँगन में रुकने को तरसती हुई धुप ,
कहीं मंद- मंद आहिस्ता सरकती हुई धूप,
किसी संगमरमरी देह से लिपटती हुई धूप,
कहीं शर्माकर,सकुचाकर,सिमटती हुई धूप.

No comments:

Post a Comment