Tuesday, 20 March 2012

एक याद 
  (वर्ष 1961 )


जिस तरह आंधी में एक
 पत्ता उड़ता हुआ     आता है ,
या चलते -चलते पैरों में
अचानक  काँटा चुभ जाता है ,
उसी तरह आज अचानक
 तुम्हारी याद ,       आ गयी ,
एक भूली -बिसरी तस्वीर ,
जो अब     धुँधला गयी ,
जैसे दीपक के जलते हीं
अँधेरे में रोशनी हो उठती है ,
या शाम होते हीं मीलों की
घंटियाँ     बज   उठती   हैं ,
उसी तरह तुम्हारी याद आते
हीं मैं कहीं   खो जाता हूँ ,
अपने वर्तमान से हट कर
पुराने क्षणों में  खो  जाता हूँ .
कह नहीं सकता कि अचानक
क्यों तुम्हारी याद आ गयी ,
सिर्फ इतना जानता हूँ कि
 आज  बस तुम्हारी याद  आ गयी .

    

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