एक याद
(वर्ष 1961 )
जिस तरह आंधी में एक
पत्ता उड़ता हुआ आता है ,
या चलते -चलते पैरों में
अचानक काँटा चुभ जाता है ,
उसी तरह आज अचानक
तुम्हारी याद , आ गयी ,
एक भूली -बिसरी तस्वीर ,
जो अब धुँधला गयी ,
जैसे दीपक के जलते हीं
अँधेरे में रोशनी हो उठती है ,
या शाम होते हीं मीलों की
घंटियाँ बज उठती हैं ,
उसी तरह तुम्हारी याद आते
हीं मैं कहीं खो जाता हूँ ,
अपने वर्तमान से हट कर
पुराने क्षणों में खो जाता हूँ .
कह नहीं सकता कि अचानक
क्यों तुम्हारी याद आ गयी ,
सिर्फ इतना जानता हूँ कि
आज बस तुम्हारी याद आ गयी .
(वर्ष 1961 )
जिस तरह आंधी में एक
पत्ता उड़ता हुआ आता है ,
या चलते -चलते पैरों में
अचानक काँटा चुभ जाता है ,
उसी तरह आज अचानक
तुम्हारी याद , आ गयी ,
एक भूली -बिसरी तस्वीर ,
जो अब धुँधला गयी ,
जैसे दीपक के जलते हीं
अँधेरे में रोशनी हो उठती है ,
या शाम होते हीं मीलों की
घंटियाँ बज उठती हैं ,
उसी तरह तुम्हारी याद आते
हीं मैं कहीं खो जाता हूँ ,
अपने वर्तमान से हट कर
पुराने क्षणों में खो जाता हूँ .
कह नहीं सकता कि अचानक
क्यों तुम्हारी याद आ गयी ,
सिर्फ इतना जानता हूँ कि
आज बस तुम्हारी याद आ गयी .
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