Friday, 23 March 2012

एक तीज ऐसी भी 
 (एक बार पापा कहलगाँव से पटना तीज में आ
रहे थे .लेकिन derailment हो जाने के कारण समय
पर पटना नहीं पहुँच पा रहे थे.उन्होंने ट्रेन में बैठे -
बैठे ,ticket पर हीं यह कविता लिखी )
         (वर्ष  1997 )



पिछले कई दिनों से मन को संभालती थी,
की आज न सही तो वह तीज  में मिलेगा,
दुनिया के छोड़ सारे वह  काम चल पड़ेगा,
आकर मुझे हजारों आशीष, प्यार देगा.
न भूख ने सताया,न प्यास ने सताया ,
बस दुःख मुझे यही है,वह आज भी न आया

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