Sunday, 25 March 2012

शादी की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर .....
(यह कविता पापा ने रांची से पटना
आते समय बस में लिखी थी )
    (वर्ष  2004)


चुनरी में लिपटी,
सहमी सी सिमटी,
तुम आई,
सकुचाई,
झुकी हुई आँखों से कितना कुछ कह गयी,
एकाकी जीवन में,
जुट गया था कोई,
सूत्रपात एक नए,
अध्याय का हुआ,
हर्षित,प्रफ्फुल्लित,
सबकुछ नया- नया,
बीतता गया समय,
दिवस,माह,वर्षों में,
चुकता गया जीवन
कई- कई टुकड़ों में.
आँखों पर चश्मे,
माथे पर सिलवटें,
स्याह से सफ़ेद
हो चुकी बालों की लटें,
फिर भी नहीं बंधी,
समय के बांधे,
अक्षुन्न रहीं,
वे सारी यादें,
हमनें सहेजे थे जिन्हें,
एक अलौकिक क्षण में,
पहले मिलन में .



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