Sunday, 25 March 2012

पत्थर...
(एक बार पापा और मम्मी में किसी बात
पर झगड़ा हो गया .पापा ने गुस्से में मम्मी
पर यह कविता लिखी .बाद में जब mood
ठीक हुआ तो उन्होंने सबलोगों को सुनाया.
सुनकर पापा ,मम्मी के साथ- साथ बाकी
लोगभी खूब हँसे .)
  (वर्ष   1998 )




पत्थर रोटी दे सकता है,
पत्थर कपड़े दे सकता है,
पर प्यार नहीं कर सकता है
पत्थर को तुमसे प्यार नहीं

जिस पत्थर को मन मंदिर में ,
देवी कह तुमने बिठा लिया,
अपनी छोटी सी दुनिया में,
एक फूल समझ कर सजा लिया


वह इन सबसे बेखबर रहा,
उसको कोई परवाह नहीं ,
पत्थर तो आखिर पत्थर है,
उसके सीने में प्यार नहीं.

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