आरज़ू
(वर्ष 1991 ,पटना )
फूलों की आरज़ू रही,दिल में मेरे सदा,
काँटों से ही निबाह किये जा रहा हूँ मैं.
हँस- हँस के छिपा सीने में दर्द का समंदर,
एक ज़िन्दगी तबाह किये जा रहा हूँ मैं.
हमनें दिए जलाने से हाँथ खींच डाले,
हर दिन को भी सियाह किये जा रहा हूँ मैं.
ये उम्र कट जाएगी,तुम तो रहो सलामत,
इतनी सी बस गुनाह किये जा रहा हूँ मैं.
(वर्ष 1991 ,पटना )
फूलों की आरज़ू रही,दिल में मेरे सदा,
काँटों से ही निबाह किये जा रहा हूँ मैं.
हँस- हँस के छिपा सीने में दर्द का समंदर,
एक ज़िन्दगी तबाह किये जा रहा हूँ मैं.
हमनें दिए जलाने से हाँथ खींच डाले,
हर दिन को भी सियाह किये जा रहा हूँ मैं.
ये उम्र कट जाएगी,तुम तो रहो सलामत,
इतनी सी बस गुनाह किये जा रहा हूँ मैं.
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