तलाश
(पापा की posting रांची में थी .
वहां वे परिवार से दूर अकेले थे .
उन्हीं दिनों यह कविता लिखी गयी थी )
(मई ,2003 ,रांची )
वहां वे परिवार से दूर अकेले थे .
उन्हीं दिनों यह कविता लिखी गयी थी )
(मई ,2003 ,रांची )
मुझे तलाश है एक कंधे की ,
जहाँ सर टिका कर रो सकूँ .
जहाँ आँखे बंद कर ,
कुछ पल के लिए ,
सब कुछ खो सकूँ .
जहाँ समय का पिघलना रुक जाए ,
जहां वर्तमान ठहर जाय,
बस ,केवल समय की अनुभूति रह जाय .
तलाश है चन्द सांसों की ,
जिन्हें मैं अपना कह सकूँ .
जिनकी गर्मी को ,
अपनी हंथेलियों में भर सकूँ ,
और जीवन के दो गीत गुनगुना सकूँ.
तलाश है एक सूने आँगन की ,
जहाँ मैं रो सकूँ ,चिल्ला सकूँ ,
किलकारियाँ भर सकूँ ,
और अपने बीते हुए कल को,
वापस ला सकूँ .
तलाश है ,रोशनी के चन्द कतरों की ,
जिनमें अपनी परछाईं देख सकूँ ,
एक बार ,सिर्फ एक बार ,
इसे अपनी नजरों से ,
शायद अपने जैसा देख सकूँ .
तलाश जारी है ,
निर्विराम,निःशेष ,निःशब्द .
बस ,केवल समय की अनुभूति रह जाय .
तलाश है चन्द सांसों की ,
जिन्हें मैं अपना कह सकूँ .
जिनकी गर्मी को ,
अपनी हंथेलियों में भर सकूँ ,
और जीवन के दो गीत गुनगुना सकूँ.
तलाश है एक सूने आँगन की ,
जहाँ मैं रो सकूँ ,चिल्ला सकूँ ,
किलकारियाँ भर सकूँ ,
और अपने बीते हुए कल को,
वापस ला सकूँ .
तलाश है ,रोशनी के चन्द कतरों की ,
जिनमें अपनी परछाईं देख सकूँ ,
एक बार ,सिर्फ एक बार ,
इसे अपनी नजरों से ,
शायद अपने जैसा देख सकूँ .
तलाश जारी है ,
निर्विराम,निःशेष ,निःशब्द .
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