कुछ बातें आपके साथ
पापा ने नियमित रूप से कुछ नहीं लिखा .कभी अखबार के टुकड़े पर ,कभी सफ़र करते -करते ticket पर हीं या कभी हमलोगों की किसी कॉपी पर कविता लिख देते थे .यदि किसी की नजर पड़ जाती तो वह उसे हिफाजत से रख लेता. इस कार्य में मम्मी का बहुत बड़ा योगदान रहा, बहुत सी कविताओं को तो हमलोगों ने पुराने कागजों में से खोज -खोज कर निकाला. ..पता नहीं , उनकी कितनी कविताएँ खो गयी होगीं .
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पापा की कविताएँ मुझे शुरू से हीं बहुत अच्छी लगती थीं .जब मैं बहुत छोटी थी,कविता का meaning भी नहीं समझती थी, तब भी पापा से उनकी कविता , विशेष कर "बांसुरी " सुनाने की जिद करती थी .इस कविता में एक मिठास है ,एक तरंग है .
अभी हाल में ,जब पापा बंगलौर आये हुए थे ,मैंने अपनी इक्षा जाहिर की ,कि मैं उनकी कविताओं को एक जगह संकलित करना चाहती हूँ .वे तैयार नहीं हुए .उन्होंने कहा -मैं कविता कहाँ लिखता हूँ .हाँ ,जब कोई बात मुझे अन्दर तक छू जाती है, तो मैं इसे लिख देता हूँ ,और फिर इसे एक shape दे देता हूँ ,बस इसे तुम मेरी कविता कहती हो .मै जिद करती रही अपनी बात के लिये .अंत में उन्होंने permission दे दिया.
इन कविताओं में अलग -अलग रंग हैं .इनमें कहीं संगीत है ,कहीं अन्तर कि पीड़ा है ,कही बीते दिनों की यादें हैं तो कहीं आने वाले दिनों के प्रति उत्साह है ,और हाँ कहीं -कहीं तीखे व्यंग भी हैं .
पापा से पूछ -पूछ कर (जहां तक उन्हें याद आया ),मैंने एक -एक ,दो -दो लाइन में कुछ कविताओं के background भी अंकित कर दियें हैं
यह संकलन कुछ नहीं ,बस पापा के प्रति मेरा एक respect है .
पापा ने नियमित रूप से कुछ नहीं लिखा .कभी अखबार के टुकड़े पर ,कभी सफ़र करते -करते ticket पर हीं या कभी हमलोगों की किसी कॉपी पर कविता लिख देते थे .यदि किसी की नजर पड़ जाती तो वह उसे हिफाजत से रख लेता. इस कार्य में मम्मी का बहुत बड़ा योगदान रहा, बहुत सी कविताओं को तो हमलोगों ने पुराने कागजों में से खोज -खोज कर निकाला. ..पता नहीं , उनकी कितनी कविताएँ खो गयी होगीं .
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पापा की कविताएँ मुझे शुरू से हीं बहुत अच्छी लगती थीं .जब मैं बहुत छोटी थी,कविता का meaning भी नहीं समझती थी, तब भी पापा से उनकी कविता , विशेष कर "बांसुरी " सुनाने की जिद करती थी .इस कविता में एक मिठास है ,एक तरंग है .
अभी हाल में ,जब पापा बंगलौर आये हुए थे ,मैंने अपनी इक्षा जाहिर की ,कि मैं उनकी कविताओं को एक जगह संकलित करना चाहती हूँ .वे तैयार नहीं हुए .उन्होंने कहा -मैं कविता कहाँ लिखता हूँ .हाँ ,जब कोई बात मुझे अन्दर तक छू जाती है, तो मैं इसे लिख देता हूँ ,और फिर इसे एक shape दे देता हूँ ,बस इसे तुम मेरी कविता कहती हो .मै जिद करती रही अपनी बात के लिये .अंत में उन्होंने permission दे दिया.
इन कविताओं में अलग -अलग रंग हैं .इनमें कहीं संगीत है ,कहीं अन्तर कि पीड़ा है ,कही बीते दिनों की यादें हैं तो कहीं आने वाले दिनों के प्रति उत्साह है ,और हाँ कहीं -कहीं तीखे व्यंग भी हैं .
पापा से पूछ -पूछ कर (जहां तक उन्हें याद आया ),मैंने एक -एक ,दो -दो लाइन में कुछ कविताओं के background भी अंकित कर दियें हैं
यह संकलन कुछ नहीं ,बस पापा के प्रति मेरा एक respect है .
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