घर
(पापा अपनी service life में ज्यादातर घर
से दूर हीं रहे,इसलिए वे घर की कमी को
सिद्दत से महसूस करते रहे .इस कविता
में उनका यह दर्द झलकता है )
तुम इसे घरौंदा ,
या घोंसला,
कोई भी नाम दे दो,
यह कितना प्यारा होता है,
कितना अपना होता है
इससमे बच्चों की किलकारियां,
बड़ों की खामोशियाँ,
और माँ बाप के झुके हुए कंधे,
सब एक साथ होते हैं
बर्तनों की झंकार होती है,
चूड़ियों की खनक होती है,
माथे पर बह आई,
पसीने के बूंदों की चमक होती है
कभी रिश्तों के टूटने की आहट होती है,
कभी उनके जुड़ने की गर्माहट होती है
सिसकियाँ भी होती हैं,
खुशियाँ भी होती हैं.
कितना कठिन है, घर को परिभाषित करना!
घर,
हँसता है ,
उदास होता है,
रोता है,
लेकिन,
घर हमेशा घर होता है
(पापा अपनी service life में ज्यादातर घर
से दूर हीं रहे,इसलिए वे घर की कमी को
सिद्दत से महसूस करते रहे .इस कविता
में उनका यह दर्द झलकता है )
तुम इसे घरौंदा ,
या घोंसला,
कोई भी नाम दे दो,
यह कितना प्यारा होता है,
कितना अपना होता है
इससमे बच्चों की किलकारियां,
बड़ों की खामोशियाँ,
और माँ बाप के झुके हुए कंधे,
सब एक साथ होते हैं
बर्तनों की झंकार होती है,
चूड़ियों की खनक होती है,
माथे पर बह आई,
पसीने के बूंदों की चमक होती है
कभी रिश्तों के टूटने की आहट होती है,
कभी उनके जुड़ने की गर्माहट होती है
सिसकियाँ भी होती हैं,
खुशियाँ भी होती हैं.
कितना कठिन है, घर को परिभाषित करना!
घर,
हँसता है ,
उदास होता है,
रोता है,
लेकिन,
घर हमेशा घर होता है
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