बिन बरसे तुम लौट न जाना
(पापा के द्वारा लिखी गयी यह दूसरी कविता
है ,इस समय वे स्कूल में पढ़ते थे )
जाने कबसे आस लगाये ,
बैठी है यह वसुधा प्यासी ,
रहो बरसते, जिससे उसकी ,
धुल जाय यह घिरी उदासी .
बरसों कि सारी धरती पर ,
अब हरियाली छा जाय ,
बरसो कि हर सूने घर में ,
सचमुच स्वर्ग उतर जाय .
होंगी खुशियाँ हर चेहरे पर ,
हर ओर नया जीवन होगा ,
यह गाँव जी उठेगा फिर से ,
सोंचो ,वह कैसा क्षण होगा ,
फिर खुश हो जायेगा किसान,
चूमेगा खेतों की क्यारी
दौड़ा दौड़ा घर आएगा,
अब शुरू करूँ सब तैयारी
जब तेज हवा में लहरेगा,
धरती का हरा भरा आँचल,
तुम भी ऊपर से झांकोगे,
सुध बुध अपनी खो कर उस पल
बातें तो तुमसे बहुत हुई,
पर एक बात तुम भूल न जाना
सबकी आस लगी है तुम पर,
बिन बरसे तुम लौट न जाना
(पापा के द्वारा लिखी गयी यह दूसरी कविता
है ,इस समय वे स्कूल में पढ़ते थे )
जाने कबसे आस लगाये ,
बैठी है यह वसुधा प्यासी ,
रहो बरसते, जिससे उसकी ,
धुल जाय यह घिरी उदासी .
बरसों कि सारी धरती पर ,
अब हरियाली छा जाय ,
बरसो कि हर सूने घर में ,
सचमुच स्वर्ग उतर जाय .
होंगी खुशियाँ हर चेहरे पर ,
हर ओर नया जीवन होगा ,
यह गाँव जी उठेगा फिर से ,
सोंचो ,वह कैसा क्षण होगा ,
फिर खुश हो जायेगा किसान,
चूमेगा खेतों की क्यारी
दौड़ा दौड़ा घर आएगा,
अब शुरू करूँ सब तैयारी
जब तेज हवा में लहरेगा,
धरती का हरा भरा आँचल,
तुम भी ऊपर से झांकोगे,
सुध बुध अपनी खो कर उस पल
बातें तो तुमसे बहुत हुई,
पर एक बात तुम भूल न जाना
सबकी आस लगी है तुम पर,
बिन बरसे तुम लौट न जाना
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